डार्क हॉर्स
है. बताइए तो अरे आपकी आँखों में आँसू क्यों आ गए? खुद को संभालिए संतोष जी। हमारे आपके जैसे लोगों को ही तो आईएएस बन के ये दुनिया बदलनी है! हम खाने- कमाने के लिए आईएएस बनने थोड़ी आएं हैं। यूपीएससी ने बकायदा अपने सलेबस में भूख के मुद्दे को शामिल किया है, हमें वो भूख मिटाना है।" रायसाहब की इन बातों ने संतोष को वैसे झकझोर दिया था जैसे बारह बरस का कोई लड़का पेड़ पर चढ़कर जामुन से भरी कोई डाल झकझोर देता है। संतोष की आँखें नम हो चुकी थी। उसकी आँखों के आगे भूख से बिलखते बच्चे नाचने लगे। उसे लगने लगा, हे भगवान! ये मैंने क्या सोच लिया। एक सिविल अभ्यर्थी होके भी खुद की भूख के जैसी सतही और तुच्छ बात कैसे कर दी?' उसने मन ही मन सोच लिया था कि पश्चाताप के तौर पर अब वह कम-से-कम दो दिन तो खाना नहीं खाएगा।
"जी बस यूँ ही आँख भर आई रायसाहब, मैं कितना नीच हूँ। छिः। मैंने अपने खाने के बारे में सोचा और दुनिया की भूख भूल गया। क्या बनूँगा मैं आईएएस।" संतोष ने आँख मिचमिचाते हुए कहा।
"आप अब इतना भी खुद की शर्मिंदा न करिए अरे अभी तो आप आए हैं आज ही। आपको क्या पता एक आईएएस के छात्र को किस एंगल से सोचना चाहिए! हम लोग भी शुरू में ऐसे ही सोचते थे पर धीरे-धीरे खुद को बदले। आपका भी हो जाएंगा टेंशन
मत लीजिए। आइए टिफिन तो रखा ही है, दो-दो रोटी खाते हैं उसी में से।" कहकर
रायसाहब टिफिन उठाने बेड से उठे।
संतोष ने अबकी चुप रहना ही उचित समझा। उसे लग रहा था कि अब फिर कुछ गडबड न बोल दे और फिर एक बड़ी ऐतिहासिक भूल दोहराने की ग्लानि झेलनी पड़े। रायसाहब अखबार बिछा उस पर टिफिन खोल छितरा चुके थे। संतोष ने एक हाथ नाक पर रख चुपचाप खाना शुरू कर दिया। रायसाहब ने इस तरह अपना ज्ञान तो बाँटा ही साथ ही संतोष को वैश्विक भूख की भयावह तस्वीर दिखा अपने कम-से-कम पचास रुपये भी बचा लिए थे जो मेजवान और सीनियर होने के कारण संतोष को खिलाने में लग सकते थे।